Development of all citizens should happen without asking about caste

Editorial:जाति पूछे बगैर होना चाहिए सभी नागरिकों का विकास

Edit1

Development of all citizens should happen without asking about caste

Development of all citizens should happen without asking about caste लोकसभा में आजकल जिस प्रकार संभवत: प्रायोजित तरीके से गतिरोध खड़ा हो रहा है, वह गंभीर और दुर्भाग्यपूर्ण है। होना तो यह चाहिए कि इस बजट सत्र में देश हित के मुद्दों पर विचार हो और योजनाओं को सिरे चढ़ाया जाए। हालांकि हालात ऐसे बन रहे हैं कि ऐसी बातों को लेकर गतिरोध खड़ा हो रहा है, जोकि न केवल सदन की अपितु देश की शांति को भी भंग कर रही हैं। निश्चित रूप से इन मुद्दों के खड़ा होने से राजनीतिक गतिरोध पैदा होता है और फिर काम नहीं सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता है। नेता विपक्ष राहुल गांधी के संबंध में अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता पक्ष की ओर से जाति वाली टिप्पणी ने आजकल सदन के अंदर और बाहर का माहौल गर्माया हुआ है।

इस टिप्पणी का आधार उन सभी चर्चाओं का योग बन रहा है, जोकि सदन में पुरजोर तरीके से कही जा रही हैं। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने ताल ठोकते हुए कहा था कि कांग्रेस की सरकार आने पर देश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इससे पहले उन्होंने आम बजट बनाने में अपनी भूमिका निभाने वाले अधिकारियों की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ हलवा सेरेमनी में प्रतिभागिता पर भी जातिवादी टिप्पणी की थी। संसद में उन अधिकारियों की फोटो दिखाते हुए उन्होंने पूछा था कि इनमें कोई भी एससी/एसटी या ओबीसी वर्ग से नहीं है। हालांकि जब उनसे जाति पूछने की किसी ने जहमत ली तो फिर पूरा विपक्ष सत्ता पक्ष के खिलाफ खड़ा हो गया।

यह कितना विचित्र है कि जब आप किसी से उसकी जाति पूछ रहे हो तो क्या सामने वाला आपकी जाति पूछने का अधिकार नहीं रखता। हालांकि इस मुद्दे पर जहां सदन के अंदर राहुल गांधी और बाकी विपक्षी सदस्यों ने तीखी टिप्पणी करते हुए विरोध जताया वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने प्रधानमंत्री मोदी की ओर से सोशल मीडिया पर इस टिप्पणी संबंधी बातें कहने पर उनके बयान की निंदा की और यह भी कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि किस बात को कहां कहना है कहां नहीं। बेशक, कांग्रेस अध्यक्ष को अपने नेता के समर्थन का हक है, लेकिन राजनीतिक रूप से यह निष्पक्ष नहीं लगता, क्योंकि अगर जाति इतनी ही छिपाने की बात है तो फिर जातिगत जनगणना की मांग विपक्ष क्यों कर रहा है। गौरतलब यह भी है कि कांग्रेस सांसद चरणजीत सिंह चन्नी ने जाति को लेकर हुई इस बयानबाजी के आधार पर प्रधानमंत्री को विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है।

दरअसल, सत्ता पक्ष के मंत्री अनुराग ठाकुर की टिप्पणियों को सदन की कार्यवाही से निकाल दिया गया था लेकिन प्रधानमंत्री की ओर से सोशल मीडिया पर पोस्ट टिप्पणी के साथ वह वीडियो भी है, जिसमें वे सभी टिप्पणियां यथावत हैं, जिन्हें हटाया जा चुका है। वास्तव में इस यह सब प्रकरण यह बताने को काफी है कि किस प्रकार सदन के अंदर और बाहर ऐसी बातों से गतिरोध खड़ा हो रहा है, जिनसे बचा जा सकता है या फिर जिन्हें टाल कर मुख्य और अहम कार्यों पर ध्यान दिया जा सकता है। हालांकि राजनीति इसी का नाम है, यहां एक-एक बात के निहितार्थ होते हैं, लेकिन बदले दौर में नेताओं के भाषण रचनात्मक नहीं अपनी खीझ मिटाने के लिए कही गई बातें भर रह गए हैं।  

इस प्रकरण में यह भी खूब रहा है, जब सत्ता पक्ष से जाति संबंधी टिप्पणी होने पर नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि वे माफी की मांग भी नहीं करेंगे। हालांकि माफी का आधार बनता भी या नहीं, यह  तब तय होगा, जब उस टिप्पणी से वास्तव में किसी का अपमान हुआ है या नहीं। इस मामले में पूरे देश ने देखा है कि बगैर किसी का नाम लिए इस बात को कहा गया है और जब अगर ऐसा बोल दिया गया है तो फिर सामने से ऐसा जवाब क्यों नहीं आता, जिसमें कि अपनी जाति के बारे में कोई खुलासा करे।

अगर इस देश में हर कोई अपनी जाति का टैग लिए घूम रहा है तो फिर क्यों नहीं उस जाति का खुलासा होना चाहिए। सिर्फ कुछ लोगों से उनकी जाति पूछ ली जाए क्योंकि राजनीति करनी है और अपनी जाति को छिपा लिया जाए क्योंकि या तो आप सच में अपनी जाति नहीं जानते या फिर आप कुछ छिपा रहे हो। वास्तव में राजनीति ऐसी ही है, यहां कोई किसी पर आरोप लगाकर अपने ऊपर आरोप लगने से बच नहीं सकता। तब प्रत्येक को इसके लिए तैयार रहना होगा। हालांकि इस सबके बावजूद यह कहा जाना चाहिए कि देश को धर्म, राजनीति और क्षेत्रों में बांटने का यह चक्र अब बंद होना चाहिए। देश के प्रत्येक नागरिक का समान विकास होना चाहिए, बगैर जाति और धर्म के। 

यह भी पढ़ें:

Editorial: पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं में इजाफा मान सरकार की कामयाबी

Editorial: अग्निपथ योजना के प्रति दृष्टिकोण को बदलना है जरूरी

Editorial: अगर माननीय एक-दूसरे की नहीं सुनेंगे तो देश कैसे चलेगा